रविवार, 21 अगस्त 2022

राजस्थानी संस्कृति और सभ्यता/ Rajasthani Culture and Civilization

 राजस्थानी संस्कृति और सभ्यता / Rajasthani Culture and Civilization



प्रस्तावना / Preface


आज का राजस्थान जिसे कभी मरु प्रदेश और राजपुताना भी कहा जाता था। जिसका भारत की संस्कृति में एक विशेष स्थान है। किसी समाज के विचारो और उसकी परम्पराओ, दार्शनिक स्थल, कला कृतियाँ, शिल्प कला, उसका इतिहास,साहित्य, उनकी धार्मिक आस्था, अपनी भाषा और अपना लोकल संगीत इन सारे शब्दों  से मिल कर बने समूह को संस्कृति और सभ्यता कहते है। राजस्थान की धरती वहा के शूरवीरो से उनके पराक्रमण ,त्याग ,बलिदान स्वाभिमान ,संस्कृति ,सभ्यता ,और रंगो आदि से जानी जाती है राजस्थान अपने आप को परम्परागत दृश्टिकोण से देखता है। इसी लिए वहा पर पुरे साल भर मेलों,त्योहारों और वहा की हस्थ शिल्प कला लोगों के आकर्षण का केन्द्र बने रहते है। जिसकी वजह से वहा पर एक खुशनुमा माहौल बना रहता है। 


Rajasthani Culture and Civilization



राजस्थानी संस्कृति और सभ्यता / Rajasthani Culture and Civilization


राजस्थान की संस्कृति और सभ्यता एक सामूहिक और प्राचीतम है। यह एक भौगोलिक और प्रकृति की सुन्दरता से भरी हुई आकर्षण संस्कृति है। राजस्थान की संस्कृति लोगो की जीवन समाहित है। जो की प्रतिनिधित्व करने वाली संस्कृति है। पधारो म्हारे देश के आमंत्रण की संस्कृति बहुत प्रचिलित है क्योंकि यह राजस्थानी सांस्कृतिक परिभ्रमण और समानार्थी को दर्शाती है।राजस्थान की धरती तैतीस जिलों का समूह है।  जिसे राजस्थान की धरती अपने आँचल में समेटे  वहा की संस्कृति ,सभ्यता और वहा की परम्पराऔ के समूह को दर्शाती है। 


राजस्थान की प्राकृतिक सुन्दरता वहा के महलो और किलों की कारीगिरी और उनका वैभव यहा की विरासत,यहा का इतिहास लोगों को आमंत्रण दे के अपनी तरफ आकर्षित करता है। यहां के मेले ,तीज-त्यौहार, धार्मिक आस्था ,रंग,बिंरगे कपड़ों और आभूषणों से सुसज्जित महिलाए फागुन के महीने में नृत्य करती हुई पर्यटन के आकर्षण का केन्द्र बनती है। राजस्थान की धरती में सूरज की रौशनी से चमकती हुई रेत और उसमे बैठ कर गाते हुये लोक संगीत यहां के पर्यटक को आकर्षित बनाता है।यहां के जनमानस ने अपनी बड़ी सोच के कारण संस्कृति ,परम्पराओ और सभ्यता को हमेशा बढ़ावा दिया और सहज कर रखने के लिये प्रेरित किया। 


राजस्थान की संस्कृति से प्रेरित यहां के शूरवीरो की वीर गाथा प्रचलित है शूरवीरो के साथ उनका साथ देने वाली त्याग और बलिदान की मूरत कहे जाने वाली वीरांगनाओ की कहानिया भी प्रचलित है। जिन्होंने अपने राज्य की स्वाभिनता ,संस्कृति ,परम्पराओ और धर्म के अस्तित्व को बनाये रखने के लिये अपनों को कुर्बान कर दिया और अपने भी प्राण त्याग दिये। राजस्थान की धरती का पश्चिम-उत्त्तर का हिस्सा रेतीला है तो वही पूर्वी -दक्षिणी का हिस्सा प्रकृति की हरियाली से सराबोर है। इनके बीच में अरावली की पर्वत माला फैली हुई है। इस राज्य के कुछ हिस्सों में सिर्फ रेत ही रेत है वहा पर पानी का अंश भी नहीं है। जैसे डुंगरो ,ढाणियों और धोरों आदि स्थल है।अगर हम देखे तो प्रकृति ने अपने दोनों रूपो को बहुत ही सुन्दर और आकर्षण बनाया है। 


राजस्थान की परम्पराये / Traditions of Rajasthan


राजस्थान की परम्पराये अदभुत और अकल्पनीय है।  यहां  लोग  अपनी आन और अपने वचन के लिये प्राण त्याग देते थे। माये अपने बेटे कुर्बान कर देती थी। होली , दीवाली , दशहरा , रक्षाबन्धन , तीज , गणगौर आदि त्योहारों को पुरे परम्पराओ के साथ मनाते है और उन्हें निभाते है। अतिथियों का स्वागत पुरे परम्पराओ के आधार पर ही करते है। लोगो की भावनाओ का सम्मान करते है अपनी परम्पराओ को पुरे रीतो-रिवाजो के साथ निभाते है।यहा की महिलाये अपनी परम्पराओ के साथ अपना जीवन बिताती है। राजस्थानी लोग घर आये  दुश्मन  का भी सम्मान करते  है।


सरण में आये व्यक्ति के लिये अपना सर्वस्व दाव पर लगा देते थे फिर चाहे शरणार्थी की रक्षा के लिये खुद क्यों ना बर्बाद हो जाये लेकिन कभी अपनी परम्पराओ से समझौता नहीं किया। राजस्थानी लोग ज्यादातर अपनी परम्परागत पोशाक में रहते  है। अपनी परम्परागत हस्त शिल्प कला से बनी हुई वस्तुओ का इस्तमाल करते है। अपने लोक संगीत को बढ़ावा देते है। हस्त शिल्प से बने आभूषणो को ही ज्यादातर इस्तमाल करते है।


राजस्थान की परम्पराओ में जौहर व्रत भी होता था।  जब लोग युद्ध पर केसरिया बाना पहन कर जाते थे। उनके जाने के पश्चात उनकी पत्निया अपनी सतीत्व की रक्षा के लिये जौहर व्रत लेती थी अर्थात पत्नीव्रत का पालन करने वाली राजपूतानिया जलते हुऐ कुण्ड में कूद कर अपनी जान दे देती थी इसकी सबसे बड़ी मिशाल रानी पदमावती थी जिनके साथ १६ हजार राजपूतानियो जौहर किया था। 


राजस्थान का इतिहास / history of Rajasthan


राजस्थान का इतिहास यहां के शूरवीरो ,वीरांगनाओ,त्याग और बलिदान से जाना जाता है। बड़े-बड़े राजमहल ,किलों ,धार्मिक स्थलों ,सभ्यताओ और परम्पराओ से जाना जाता है। यहां के लोक संगीत और पहनावेँ से जानते है। कला कृतियाँ अपनी कारीगिरी से बनाये गये शहरों से जानते है तीर,तलवार ,भाला ,बरछी ,कटार और यहां के वफादार जानवरो से यहां का इतिहास जाना जाता है। राजस्थान का इतिहास महाराणा प्रताप जैसे शूरवीर ,रानी पदमावती,राणा सांगा की पुत्रवधु मीरा बाई और अपने बेटे को कुर्बान करने वाली पन्ना धाय के नाम से जाना जाता है। 


उपसंहार / Epilogue


राजस्थान अपनी ऐतहासिक परम्पराओ अपनी भड़कीली भेष -भूषा ,लोक संगीत , कला कृतियाँ , अस्त्र-शस्त्र , शिल्प कला , आकर्षण महल और किले ,अपने त्याग और बलिदान के रूप में जाना जाता है यहां की नृत्य कलाये चमचमाती रेत और हरे-भरे पर्यटक स्थल इसकी सौंदर्य को बढ़ाते है। महलो में बनी चित्रकला मनमोहक बनाती है पहाड़ों से निकले हुये सुरंग वाले रास्ते आकर्षित करते है। राजस्थान अपनी हस्त कला स्थपत्य चित्रकला और अपने रंग-बिरंगे वस्त्र नक्कासिया रंगीले अंदाज़ के लिये जानते है यहां के इतिहास परम्पराओ से इसकी पहचान है। संगमरमर की पहाड़िया रेत के टीले अरावली की पर्वत माला ब्रम्हा जी का पुष्कर मन्दिर जो सबसे ज्यादा प्रचलित है।



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