प्रकृति हमें क्या देती है//what nature gives us
हमने खुद को प्राकृतिक दुनिया से इतना अलग कर लिया है और यह बहुत आसान है प्रौद्योगिकी और उद्योग के उदय ने भले ही हम प्रकृति से सतही तौर पर दूर हो गये है लेकिन इसने प्राकृतिक दुनिया पर हमारी निर्भरता को नहीं बदला है. हम मूल रूप से आज भी प्रकृति पे ही निर्भर है और अजीवन निर्भर रहगे हमने कितना भी अपने आप को विकशित कर लिया हो लेकिन प्रकृति के बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं है
अक्सर सुविधाजनक लोग यह भूल जाते है कि प्रकृति हमेशा की तरह दे रही है, भले ही वह धीरे-धीरे गायब हो जाए।प्रकृति हमारे लिये एक शुद्ध वातावरण का निर्माण करती है ताकि हमें शुद्ध वायु और स्व्छय पानी मिल सके और हम शुद्ध वातावरण में जी सके जिससे हमारा शरीर बलिष्ट और ऊर्जावान बन सकें लेकिन हम अपने सुख - सुविधाओ के चलते प्रकृति के शुद्ध वातावरण को खत्म कर रहे है।
what nature gives us |
दैनिक आधार प्रकृति के भीतर असंख्य अंतःक्रियाओं का उत्पाद बना रहता है, और उनमें से कई अंतःक्रियाएं जोखिम में पड़ जाती हैं। हम जो कुछ भी उपयोग करते हैं और उपभोग करते हैं उनमें से अधिकांश उतना ही हमारे लिये महत्वपूर्ण, सौंदर्य, कला और आध्यात्मिकता के संदर्भ से मिले उपहार है प्रकृति हमारी जीवनचर्या का एक उदाहरण है जो हमे स्वथ्य और समृद्ध बनाती है
ऐसे भौतिक सामानों से जो हमे सुविधा प्रदान करते है भले ही प्राकृतिक दुनिया कम मूर्त प्रदान करती है, प्राकृतिक चक्र जैसे कि जलवायु और पोषक तत्वप्रदान करता लेकिन वैज्ञानिक ऐसे उपहारों को 'पारिस्थितिकी तंत्र सेवाएं' कहते है। वैज्ञानिको के मत के आधार पर ये प्रकृति का काम है जो उसे करना ही होता है मगर वैज्ञानिक अपनी जिम्मेदारी को प्रदर्शित नहीं करता क्योकि इसमें वह अपने को हारा हुआ महशुस करता
इसमें कोई संदेह नहीं है कि पृथ्वी एक दाता औए अन्न दाता ग्रह है। मनुष्य को जीवित रहने और फलने-फूलने के लिए जो कुछ भी चाहिए, वह सब कुछ हमे पृथ्वी प्रदान करती है लेकिन हम भौतिक सुविधाओ के चलते पृथ्वी को आज बर्बाद कर रहे है जिस वजह से आज पृथ्वी का पानी कम होता जा रहा है और जो बचा है वह प्रदूषण से घिरा हुआ है और हमारी वायु जो प्रदूषण चपेट में आ चुकी है जिस वजह से हमारी पृथ्वी आज पूरी तरह से बर्बाद हो रही
शायद इससे भी आगे अगर कोई लास्कॉक्स में गुफा चित्रों को साक्ष्य के रूप में स्वीकार करता है। फिर भी हमने अपने आप को प्राकृतिक दुनिया से इतना अलग कर लिया है की यह कहना आसान होगा की हम प्रकृति से बहुत दूर हो गये है प्रकर्ति हमे सब कुछ देती है बदले में हमसे सिर्फ इतना चाहती है की हम उसका ख्याल रखे लेकिन हम इतने स्वार्थी हो गए है की हम प्रकृति के लिये इतना भी नहीं कर सकते है
ऐसी भौतिक वस्तुओं से परे, प्राकृतिक दुनिया कम मूर्त, लेकिन उतनी ही महत्वपूर्ण, सौंदर्य, कला और आध्यात्मिकता के रूप में उपहार प्रदान करती है। ऐसा कोई भौतिक पदार्थ नहीं है जो हमे प्रकृति के समान हमे सुविधा प्रदान कर सकें जैसे मनुष्यों को मीठे पानी से अधिक की आवश्यकता होती है: पानी के बिना हम केवल कुछ नारकीय दिनों तक ही जीवित रह सकते हैं
शोध के अनुसार, पारिस्थितिकी तंत्र जितना अधिक जैव विविधता वाला होता है, पानी उतनी ही तेजी से और अधिक कुशलता से शुद्ध होता है। मानव कृषि सहित दुनिया के पौधों को परागित करते हैं। अगर हम पूरी दुनिया को पेड़-पोधो से हरा-भरा कर दे तो हमारा पानी और वायु दोनों शुद्ध हो जायगे एक बाग में हर सेब के फूल को परागित करने की कोशिश करने की कल्पना करें।
प्रकृति हमारे लिए यही करती है। कीड़े, पक्षी और यहां तक कि कुछ स्तनधारी जीव भी होते है जो प्रकृति की सुंदरता को बनाये रखने में योगदान देते है और पृथ्वी के लिए कार्य करते है मगर मानव एक ऐसी जाति है जो प्रकृति को सिर्फ बर्बाद कर रहा है क्योकि आज वह अपने स्वार्थ वश सब कुछ बर्बाद कर रहा है
दुनिया के कई पौधों को अपने बीजों को मूल पौधे से नए अंकुरित मैदान में स्थानांतरित करने के लिए अन्य प्रजातियों की आवश्यकता होती है। जिस वजह से हमे अन्न,फल,सब्जिया,आयुर्वेद की अवषधिया प्रदान करती लगभग सभी कृषि कीटों के प्राकृतिक दुश्मन होते हैं। चमगादड़ के साथ, इनमें पक्षी, मकड़ी, परजीवी ततैया और मक्खियाँ, कवक और वायरल रोग शामिल हैं।इनकी वजह से फसल और मानव दोनों को नुकसान होता है
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