नवरात्रि का महत्व / Importance of Navratri
प्रस्तावना / Preface
नवरात्रि का त्यौहार हिन्दू धर्म में बहुत महत्व रखता है नवरात्रि साल में दो बार मनायी जाती है एक चैत्र की नवरात्रि और एक शारदीय नवरात्रि होती है। नवरात्रि में माँ आदि शक्ति के नौ रूपों के दर्शन होते है।नवरात्रि में रंगो का बहुत महत्व होता है क्योकि नवरात्रि में हर दिन एक रंग खास होता है। जिसमे माँ दुर्गा के हर रोज एक रूप की पूजा होती है हिन्दू मान्यताओं के आधार पर चैत्र की नवरात्रि से नववर्ष की शुरुआत होती है और शर्दीय नवरात्रि को धर्म की अधर्म पर और सत्य की असत्य पर विजय का प्रतीक माना जाता है। प्रकृति माँ आदि शक्ति का ही एक स्वरूप है। कहते है की नवरात्रि में माँ दुर्गा अपने मायके आती है जहां उन्होंने माँ पार्वती के रूप में जन्म लिया था। नवरात्रि का त्यौहार नौ दिन पुरे देश बड़े धूम -धाम से और हर्ष -उल्लास से मनाया जाता है। लोग नौ दिन तक व्रत रखते है ,जवारे बोते है और कलश की स्थापना करते है जिसमे यह अखंड ज्योत नौ दिनों तक जलती रहती है। पुरे देश लोग नौ दिनों तक पूजा -पाठ और गरभा की धूम रहती है जिसमे लोग नाचते -गाते और डांडिया खेलते नौ दिन बीतते है और दशमी के मूर्ति विसर्जन होता है।
Importance of Navratri |
नवरात्रि की हमारे जीवन में खास जगह है क्योकि माँ दुर्गा जगत जननी है। उन्होंने अपने भक्तों और संसार की रक्षा के लिए बहुत से राक्षसों असुरों का वध किया है। वैसे तो माँ दुर्गा के बहुत रूप है लेकिन नवरात्रि में माँ के नौ रूपों के दर्शन होते है। माँ दुर्गा के बारे में हमारे पुराणों में कहा गया है कि एक बार ब्रम्हा जी ने महिषासुर नाम के राक्षस को वरदान दे दिया था जिसकी वजह से महिषासुर ने लोगो पर अत्याचार करना शुरू कर दिया जिससे माँ आदि शक्ति ने माँ दुर्गा के रूप में जन्म लिया। महिसासुर और माँ दुर्गा के बीच नौ दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ और दशमी के दिन महिषासुर का वध किया। माँ दुर्गा के जिन नौ रूपों की पूजा होती है। उसमें पहला माँ शैलपुत्री ,दूसरा माँ ब्रह्मचारिणी ,तीसरा माँ चन्द्रघंटा ,चौथा माँ कूष्माण्डा ,पांचवा माँ स्कंदमाता ,छठा माँ कात्यायनी ,सातवां माँ कालरात्रि ,आठवां माँ महागौरी और नौवां माँ सिद्धिदात्री की नवरात्रि में पूजा की जाती है।
माता का पहला रूप शैलपुत्री / Shailputri, the first form of mother
शुक्ल पक्ष की नवरात्रि के पहले दिन पहले रूप में माता शैलपुत्री की पूजा होती है। माता शैलपुत्री पर्वतो के राजा हिमालय की पुत्री है। इसी वजह से उनका नाम शैलपुत्री पड़ा। पहले दिन लोग हवन पूजन करके कलश और ज्योत की स्थापना करते है और नवरात्र की शुरुआत करते है। अगर हम पहले दिन उपवास करके माता के चरणों में घी का दीपक प्रजोलित करते है तो हमे जीवन भर निरोगी रहने का आशीर्वाद प्राप्त होता है। माता शैलपुत्री का वाहन नंदी बैल होते है। माता शैलपुत्री श्वेत वस्त्र धारण करती है माँ अपने दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाय हाथ में कमल का फूल शुशोभित होता है।
जब नवरात्रि की शुरुआत होती है तब सर्वप्रथम माता शैलपुत्री की पूजा होता है। माता शैलपुत्री हमारे मूलाधार चक्र में सक्रिय होती है। हमारा मूलाधार चक्र हमारे पूर्व जन्म के अच्छे और बुरे कर्मो का आकलन करता है। मूलाधर चक्र प्राणी द्वारा किये गए कर्मो के आधार पर उसक भाग्य तय करता है। यह योग और साधना का सर्वप्रथम प्रथम चक्र होता है। मूलाधार चक्र आपके अचेतन मन से जुड़ा होता है। माता शैलपुत्री एक करुणा और स्नेह वाली देवी है और यह हमेशा जीव -जन्तुओ की रक्षा करती है।
माता का दूसरा रूप ब्रह्मचारणी / Another form of mother is Brahmacharani.
नवरात्र का दूसरा दिन माता ब्रह्मचारणी का होता है। कहते है कि माता अपने भक्तो को कभी निराश नहीं करती बल्कि उनके सारे कष्टों को हर लेती है माता ब्रह्मचारणी को माता दुर्गा का विशेष स्वरूप माना जाता है। कहते है की माता ब्रह्मचारणी का स्वरूप देवी पार्वती के अविवाहित जीवन के रूप को कहते है। माता ब्रह्मचारणी के नाम में ब्रह्म का मतलब तपस्या से है और चारणी का मतलब आचरण से होता है। ब्रह्म के तरह आचरण रखने वाली को माँ ब्रह्मचारणी कहते है। माता ब्रह्मचारणी का पूजन और आराधना से माता तपस्या ,त्याग ,सयम ,शक्ति और वैराग्य आदि में वृद्धि करती है और शत्रुओ को हराकर उन पर विजय हासिल करने की शक्ति प्रदान करती है।
माता ब्रह्मचारणी भगवान महादेव से शादी करने के लिए माता ने ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए कई हजार साल तक तपस्या करती रही इस लिए माता को ब्रह्मचारणी कहते है माता सैकड़ो सालो तक फल -फूल खा कर और सौ साल तक सिर्फ वनस्पतियो का सेवन करके और फिर माता ने कठिन उपवास रख कर तेज वर्षा और धूप को सहन करती रही मगर माँ ने भोलेनाथ की आराधना करना नहीं छोड़ा लेकिन भोलेनाथ प्रसन्न नहीं हुए कई हजार वर्षो तक तपस्या करने से माता बहुत कमजोर हो गयी थी माता को ऐसे हाल में देख ऋषि -मुनि ,सिद्धिगण और देवताओं ने माता के लिए सबने प्रार्थना की और उन्हें आशीर्वाद दिया।
माता का तीसरा रूप चन्द्रघंटा / Chandraghanta, the third form of mother
नवरात्र का तीसरा दिन माता चन्द्रघंटा का माना जाता है। माँ दुर्गा के तीसरे रूप को राक्षस और असुरों के वध करने के लिए जाना जाता है वह हमेशा अपने भक्तों के दुखों को दूर करती है। माता चंद्रघंटा अर्द्घचंद्र को धारण करती है जो घंटे के आकार का होता है इसीलिए उन्हें माँ चन्द्रघंटा कहते है। देवी माँ का रूप स्वर्ण की तरह होता है और इनकी दस भुजाएं होती है जो अस्त्र -शस्त्र और पुष्प को धारण करती है और माँ चन्द्रघंटा सिँह की सवारी करती है।
माता चंद्रघंटा की उत्पत्ति धर्म की रक्षा करने के लिए और संसार को सुख और समृद्धि प्रदान करने के लिए हुई है। माता चंद्रघंटा दुष्टो का संहार करती है जिससे उनके भक्तों की रक्षा होती है और उनकी मनोकामना को पूरा करती है भक्तो को भय से मुक्त कराती है और साहस प्रदान करती है। माता तंत्र -मंत्र की साधना में मणिपुर चक्र को नियंत्रित करने का आशीर्वाद प्रदान करती है।
माता का चौथा रूप कुष्मांडा / Mother's fourth form Kushmanda
नवरात्रि का चौथा दिन माता कुष्मांडा देवी के पूजन का दिन होता है। हम इस दिन माता को मालपुआ अर्पण करते है हम इस प्रसाद को गरीब और जरूरतमंद लोगों को दान करते है। माता कुष्मांडा देवी अपने उदर से ब्रह्माण्ड की रचना की थी जिसके कारण इन्हे कूष्माण्डा देवी के नाम से जाना जाता है कहते है कि कुष्मांडा देवी मंद -मंद मुस्कराहट वाली माता है। माँ कूष्माण्डा तेज की देवी है।क्योंकि माता के तेज से दसों दिशाएं प्रकाशमय होती है। माता कूष्माण्डा देवी के तेज से ही ब्रह्माण्ड की चीजों और प्राणी जाति में तेज का प्रभाव होता है।
माता कुष्मांडा देवी की अर्चना करने से सारे रोगों का नाशं होता है। माता कुष्मांडा देवी अपने भक्तो पर हमेशा कृपा बनाये रखती है। माता कुष्मांडा देवी की आराधना करने से व्यक्ति को स्वाश्थ ,सफलता , धन -वैभव और बल आदि की प्राप्ति होती है। माता कुष्मांडा देवी की आठ भुजाएं होती है। इसलिए इन्हे अष्टभुजा धारी भी कहा जाता है। माता के हाथो में कमन्डल ,धनुष -बाण ,गदा ,तलवार ,त्रिशूल ,चक्र और जपमाला होती है। कहते है कि अगर भक्त पूरी श्रद्धा और निष्ठा से माता कुष्मांडा देवी की पूजा - अर्चना करे तो माता थोड़े ही समय में भक्त से प्रसन्न हो जाती है और आशीर्वाद स्वरूप व्यक्ति के जीवन को सुखमय बनाने में माँ मदद करती है।
माता का पांचवां रूप स्कंदमाता / Skandamata, the fifth form of mother
नवरात्रि के पांचवे दिन हम माता स्कंदमाता का पूजन करते है। माँ स्कन्दमाता ब्रह्मस्वरूप मानी जाता है। स्कन्द कुमार या कार्तिकेय की माता होने की वजह से उन्हें माँ स्कंदमाता कहते है। स्कंद का मतलब है कार्तिकेय जो की माता पार्वती और भगवान शिव के जेष्ठ पुत्र है जिसकी वजह से इन्हे स्कंद माता कहते है। इन्हे मोक्ष का द्वार खोलने वाली माता कहा जाता है। माँ स्कंदमाता का रूप मन को आकर्षण कर देने वाला है माता स्कंदमाता चार भुजा धारी है। माता कमल के फूल से बने आसन में विराजमान होती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार तारकासुर नाम का एक राक्षस हुआ करता था जो ब्रम्हा जी की कठोर तपस्या करके अमर होने का वरदान मांगता है लेकिन ब्रम्हा जी कहते है की मै यह वरदान नहीं दे सकता तभी तारकासुर कहता है की मुझे आप यह वरदान दीजिये की मेरी मृत्यु भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र के द्वारा हो। उसके बाद तारकासुर ने लोगों पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। हर तरह से तंग आकर सारे देवताओं ने भगवान शिव से मदद मांगी तब भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती ने सादी की और भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ जिन्होंने तारकासुर का वध किया।
माता का छठा रूप कात्यायनी / Katyayani, the sixth form of mother
नवरात्रि का छठा दिन माता कात्यायनी देवी की पूजा -अर्चना का होता है। माता कात्यायनी देवी की पूजा गृहस्थ जीवन को सफल बनाने के लिए और विवाह के लिए उत्सुक व्यक्ति भी पूजा करते है। माता कात्यायनी देवी की पूजा करने से हमें पढ़ाई -लिखाई में सफलता प्राप्त होती है। पौराणिक कथाओ के आधार पर माने तो महाऋषि कात्यायन के यहां पर माता ने उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया था जिसके कारण उनका नाम माता कात्यायनी देवी पड़ा। माँ का स्वरूप स्वर्ण जैसा चमकीला और तजस्वी होता है
माता ने कात्यायन ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर माता आदि शक्ति दुर्गा ने आशीर्वाद के फल स्वरूप उनकी पुत्री के रूप में जन्म लेने की बात कहि माता कात्यायनी देवी को मन की शक्ति प्रदान करने वाली माता कहा जाता है और माता कात्यायनी देवी की कृपा से आप अपनी सभी इन्द्रियों को अपने वश में कर सकते है। माता कात्यायनी देवी चार भुजाधारी होती है। माता का एक हाथ ऊपर की ओर अभय मुद्रा में होता है और एक हाथ नीचे की ओर वर मुद्रा में होता है। माता का दूसरी तरफ ऊपर वाले हाथ में तलवार होती है और नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सोभामान होता है।
माता का सातवां रूप कालरात्रि / Kalratri, the seventh form of mother
नवरात्रि का सातवां दिन माता कालरात्रि के पूजन का दिन होता है। माता कालरात्रि का रूप बहुत ही भयानक होता है लेकिन माता अन्दर से विनम्र और शुभ फल देने वाली माता कहि जाती है। माता कालरात्रि के नाम का अर्थ काल होता है इसका मतलब मृत्यु है माता कालरात्रि के नाम का अर्थ दुनिया से अंधेरे को खत्म करना होता है। माता कालरात्रि का शरीर काला होता है माता के गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला होती है। माता के नासिका से श्वास के कारण अग्नि की ज्वालाएं निकलती रहती है। माँ कालरात्रि को शास्त्रों में त्रिनेत्री कहा गया है। इनके तीनों नेत्र ब्रह्माण्ड की तरह विशाल होते है। जिनमे से विद्युत की तरंगें प्रज्वलित होती रहती है।
हमारे पुराणों के आधार पर यह मान्यता है की शुंभ और निशुंभ नाम के दो दानव हुआ करते थे जो देवलोक में बहुत अत्याचार कर रहे थे। युद्ध में जब देवता पराजित हो गए तब देवलोक में दानवों का राज हो गया सारे देवता माता पार्वती के पास गये और जब देवता अपनी आपबीती बता रहे थे उस समय माता पार्वती स्नान कर रही थी इसलिए उन्होंने माता चण्डी को भेजा तब दानवो ने चण्ड - मुण्ड नामक दानवों को लड़ने के लिए भेजा उस समय माता पार्वती ने माता कालरात्रि का रूप धारण किया जो बहुत ही उग्र था और दानवों का वध कर दिया।
चण्ड और मुण्ड ने रक्तबीज को भेजा जिसका रक्त भूमि में गिरने से नया रक्तबीज पैदा हो जाता था तब माता कालरात्रि ने सोचा क्यों ना मै इसको मार कर इसका सारा रक्त पी जाऊ ताकि वह भूमि पर गिरेगा ही नहीं और एक और रक्तबीज पैदा नहीं होगा। अगर हम देखे तो माता कालरात्रि को लेकर बहुत सी कथाएं प्रचलित है। माँ कालरात्रि एक भीषण अग्नि प्रवाह करने वाली देवी है जिनके नेत्रों से नासिका से अग्नि प्रवाह होती है लेकिन माता अपने भक्तो के लिए शुंभकारी ही होती है। माता का पूजन पुरे विधि विधान से करनी चाहिए ताकि माता कालरात्रि हमसे प्रसन्न रहे और अपने भक्तो की हमेशा रक्षा करती रहे।
माता का आठवां रूप दुर्गा / Durga, the eighth form of mother
नवरात्रि की अष्टमी को माता आदि शक्ति के रूप माँ दुर्गा की पूजा होती है। माता दुर्गा अपने भक्तो को कीर्ति ,विजय ,सुख ,समृद्धि और निरोगी आदि होने का आशीर्वाद देती है। माँ दुर्गा की पूजा करने से भक्तो के सारे दुःख दर्द समाप्त होते है। नवरात्रि के अष्टमी के दिन माँ दुर्गा का जन्म हुआ था जब माता महागौरी ने माँ दुर्गा का जन्म लिया तब वह सिंह पर सवार होकर और अस्त्रों-शस्त्रों से सुशोभित हुई और ऐसा उन्होंने एक दुर्गसुर नामक दानव को मारने के लिए किया था। इसलिए नवरात्रि की अष्टमी को माँ दुर्गा के रूप में जाना जाता है।
पौराणिक कथाओं की अनुसार उस समय एक दुर्गासुर नामक एक राक्षस था जिसने पूरे ब्रह्माण्ड में दहशत मचा रखी थी जिस बजह से सारे देवतागण परेशान हो चुके थे जिसके कारण देवताओं को अपने देवलोक को छोड़कर भागना पड़ा था तब सारे देवताओ ने मिलकर माता महागौरी से रक्षा करने को कहा तो माता ने माँ दुर्गा का रूप धारणकर दुर्गसुर को मार दिया क्योकि दुर्गसुर बहुत ही शक्तिशाली था। जिस वजह से देवताओ में उससे लड़ने की उतनी शक्ति नहीं थी। इसलिए ब्रह्मा ,विष्णु और महादेव के कहने पर माँ महगौरी ने माँ दुर्गा का रूप लिया इसलिए अष्टमी को माँ दुर्गा के रूप में जानते है।
माता का नवमीं का रूप सिद्धिदात्री / Mother's form of Navami Siddhidatri
नवरात्रि के नवें दिन माता सिद्धिदात्री रूप की पूजा होती है। कहा जाता है की माता सिद्धिदात्री का स्वरूप माता का पूर्ण स्वरूप है। अगर कोई भी भक्त सिर्फ नवें दिन ही माता की पूजा पुरे विधि -विधान से करता है तो उस भक्त को पूरी नवरात्रि का फल मिल जाता है। माता सिद्धिदात्री भक्तो को वरदान और सिद्धिया प्रदान करने वाली माता है। माता कमल के पुष्प पर विराजमान होती है और माँ के अस्त्र गदा, चक्र, शंख और कमल का पुष्प होते है और माता सिंह की सवारी करती है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान महादेव ने माता सिद्धिदात्री की तपस्या करके माता से आठ सिद्धिया प्राप्त की थी। पुराणों में यह अंकित है की माता सिद्धिदात्री की कृपा से ही भगवान महादेव की आधी देह देवी माँ की हो गयी थी जिसके कारण महादेव अर्धनारीश्वर कहे जाते है। पुराणों के अनुसार माता की सिद्धियां वह अणिमा ,महिमा ,गरिमा ,लघिमा ,प्राप्ति ,प्राकाम्य ,ईशित्व और वशित्व माता की आठ सिद्धियां होती है। अगर यह सिद्धियां आपको प्राप्त करनी है तो यह माँ सिद्धिदात्री की पूजा -पाठ और उपासना करके प्राप्त की जा सकती है।
उपसंहार / Epilogue
नवरात्रि का त्यौहार माता पार्वती के नौ रूप को दर्शाता है और उनके द्वारा रचित लीलाओँ के बारे में सुनिश्चित करता है। हिन्दू मान्यताओं के आधार पर हम जानते है कि साल में चार नवरात्रि होती है। जिसमे की दो नवरात्रि गुप्त होती है और दो नवरात्रि में उत्सव मनाया जाता है। कहते है कि माता इस समय धरती पर आती है और नौ दिनों तक वह धरती पर रहती है क्योकि धरती उनका मायका कहा गया है। शरदीय नवरात्र में धर्म की अधर्म पर और सत्य की असत्य पर विजय का प्रतीक माना जाता है। ऐसा इस लिए कहा जाता है क्योकि भगवान श्री राम ने रावण को मारकर धर्म की रक्षा की थी और सत्य पर विजय प्राप्त की थी। माता पार्वती ने जो भी स्वरूप धारण किया वह धर्म की रक्षा और अधर्मियों का नाश हो इसलिए किया ताकि सत्य पर असत्य की विजय ना हो सकें। इसलिए माँ ने दुष्टो का संहार किया और धर्म की रक्षा की। माता पार्वती जगत -जननी है। जो अपने भक्तो को कभी निराश नहीं करती है।
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