मानव जीवन अलग-अलग युगों में भिन्न होता है / Human life varied in different ages
प्रस्तावना / Preface
मानव भगवान के द्वारा निर्मित उनकी सबसे सुन्दर रचना है। हमारे वेद -पुराण ,शास्त्र और ग्रन्थ यह बताते है कि चारों युगों सतयुग ,त्रेतायुग ,द्वापरयुग और कलयुग में मानव की संरचना में बदलाव होते रहे है। चारों युगों की जलवायु ,खान -पान और रहन—सहन के कारण मानव संरचना और मानव प्रवर्ति में बदलाव आते रहें है क्योंकि हर युग का अपना एक अलग महत्व है हर युग की समय सीमा अलग है ,हर युग में मानव के कर्मकांड अलग है ,और उसी आधार पर मानव की संरचना में बदलाव होते रहें। सनातन धर्म के अनुसार चारोँ युग एक विशाल समय सीमा को दर्शाते है जो हमारे भूतकाल ,वर्तमानकाल और भविष्यकाल के समयचक्र से जोड़कर देखे जाते है।
क्यों मनुष्य चारों युगों में भिन्न हैं / Why humans are different in the four ages
सतयुग ,त्रेतायुग ,द्वापर युग और कलयुग इन चारों युगों में मानव में कभी समानता नहीं रही हर युग में मानव शरीर और मनोवृति से अलग ही रहा है जिसके साक्ष्य हमेशा मिलते रहें है। मानव का हर युग में ज्ञान -ध्यान और पूजा पाठ में भिन्नता मिलती है ,मानव के रहन -सहन और खान—पान में बहुत अंतर मिलते है ,मानव अपने आप में एक ऐसी संरचना है जिसे सोचने ,समझने और कार्य करने की क्षमता प्रदान होती है। जब युगों का निर्माण हुआ तब धर्म के चार पैर होते थे जिसकी वजह से सतयुग में सिर्फ सत्य था असत्य की कोई जगह नहीं थी लेकिन त्रेतायुग में धर्म के तीन पैर बचें थे और द्वापर युग में सिर्फ दो पैर बचें वही अगर हम कलयुग की बात करें तो इसमें धर्म अपाहिज हो गया है जिस कारण आज दुनिया में अधर्म का बोलबाला है।
सतयुग / golden age
सतयुग चारोँ युगों का प्रारम्भ युग जिसे हम जीवन का शुरुआती युग भी कह सकतें है। सतयुग की समयावधि १७ लाख २८ हजार साल की थी। इस युग में मानव बहुत आध्यात्मिक होते थे सतयुग में मानव की औसतम लम्बाई ३२ फिट होती थी। उस समय मानव की उम्र लगभग १ लाख साल तक होती थी। सतयुग में मानव एक सात्विक जीवन जीते थे जिससे वह शरीर से बहुत शक्तिशाली और बुद्धिमान होते थे। सतयुग में मानव स्वर्ण के पात्रों का प्रयोग करते थे और उस समय की मुद्रा रत्नमय होती थी। उस समय के मानव सैकड़ों सालों तक तपस्या करते रहते थे। सतयुग में मानव के मस्तिष्क आपस में जुड़ें होते थे जिसके कारण बिना किसी यंत्र के वह एक -दूसरे से बात कर पाते थे क्योंकि सतयुग विकास का प्रतीक था जिसमे मानव और धर्म के उत्थान की बात कहि गयी है।
सतयुग में मानव छोटे -छोटे समूह में वस्ति बनाकर रहा करते थे। सतयुग में लोग पुरे विधि -विधान से पूजा—पाठ करते थे जिससे प्रभु प्रसन्न होकर स्वतः दर्शन देते थे। सतयुग में पाप शून्य होता था और पुण्य १०० प्रतिशत होता था उस समय लोगों का तीर्थ पुष्कर को माना जाता था। सतयुग में मानव मोह ,लोभ और माया आदि से परे थे इसलिए परिवार से ज्यादातर दूर ज्ञान -ध्यान ,योग -साधना और तपस्या में लीन रहकर अपना जीवन बिताते थे और हमारे ऋषि -मुनि उस समय दुनिया भर के सबसे बड़े और पहले वैज्ञानिक कह गए थे। जिन्होंने मानव जीवन के उत्थान के लिए बहुत से अविष्कार किये जो मानव जाति के लिए वरदान साबित हुए। सतयुग में मानव जीवन बिलकुल अलग था क्योंकि मानव अपना जीवन कर्तव्यपरायण और परोपकार के लिए अपना जीवन जीता था।
त्रेतायुग / Tretayug
त्रेतायुग समयकाल का दूसरा युग है जिसकी समयावधि १२ लाख ९६००० हजार साल की थी। त्रेतायुग मे पाप २५ प्रतिशत और ७५ प्रतिशत पुण्य का प्रभाव था। त्रेतायुग में मानव २१ फिट (१४ हाथ ) लम्बाई होती थी। उस समय का प्रचलित तीर्थ स्थल नैमिषारण्य होता था। त्रेतायुग में मानव की उम्र १० हजार होती थी। इस युग में स्वर्ण मुद्रा होती थी और चांदी के पात्र होते थे। त्रेतायुग सतयुग की अपेक्षा कुछ अलग था क्योकि इस युग में मोह ,माया ने जन्म ले लिया था। त्रेतायुग में मानव लोभी होने लगा था हलाकि अभी उतना परिवर्तन नहीं था लेकिन लगभग २५ प्रतिशत मानव बदल चूका था। मानव अपने फायदें के लिए झूठ बोलने लगा था अपने लोभ में एक मानव दूसरे मानव को सताने लगा था और परिवार के प्रति मोह प्रगाण होने लगा था।
त्रेतायुग में मानव धर्मिक था लेकिन वह अधर्म की तरफ अग्रसर हो रहा था क्योंकि इस युग में धर्म के तीन पैर थे जिस वजह से लोगों के अंदर लोभ ,मोह ,माया और कामवासना जन्म लेने लगी थी। मानव अत्याचारी बनने लगा था। मानव धार्मिक था लेकिन उसका मन अब चंचल होने लगा था। त्रेतायुग में मानव के अन्दर खान-पान और रहन -सहन में भी परिवर्तन आने लगें थे जो कहि ना कहि मानव ने पतन का अध्याय लिखना शुरू कर दिया था। उदाहरण स्वरूप राजा दशरथ ने पुत्र मोह में अपने प्राणों को त्याग दिया था और केकई ने भरत को राज्य मांग कर राम को वनवास मांग कर अपने लोभ को दर्शाया था वही चारों वेदों का ज्ञान रखने वाला रावण जिसने माता सीता का हरण करकें अपने अहंकार का परिचय दिया था और प्रभु श्री राम ने मर्यादा निभाते हुए रावण को मारकर उसका अहंकार तोडा था
द्वापर युग / Dwapar Yuga
द्वापर युग जो चारों युगों का तीसरा युग था जिसकी समय सीमा ८ लाख ६४००० हजार थी जिसमे मानव की ११ फिट ( ७ हाथ ) होती थी और मानव की उम्र १००० वर्ष होती थी। द्वापर युग में मुद्रा चांदी की होती थी और मानव पात्र ताम्र के प्रयोग करता था। यह युग ५० प्रतिशत पाप और ५० प्रतिशत पुण्य का था क्योंकि इसमें धर्म के सिर्फ दो पैर बचें थे। द्वापर युग में मानव धर्म के रास्तें पर चलने वाला तो था लेकिन अधर्म को भी बढ़ावा दिया जा रहा था उस समय मानव अपने रहन -सहन में बहुत परिवर्तन लाना चाहता था जिस कारण वह स्वार्थी और लोभी हो चूका था। द्वापर युग में मानव अपने ही लोगों के खिलाफ षड्यंत्र करने लगा था क्योंकि मानव के मन से रिश्तों की अहमियत कम हो रही थी। द्वापर युग की विख्यात कहानी श्री कृष्ण और राधा का अमर प्रेम ,श्री कृष्ण और सुदामा की घनिष्ट मित्रता जो द्वापर काल का सबसे बड़ा उदाहरण बनी।
द्वापर युग भगवान श्री कृष्ण का कहा जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने अधर्मियों का नाश करने के लिए जन्म लिया था जब श्री कृष्ण ने जन्म लिया उस समय उनके माता -पिता पर उनके ही मामा कंस द्वारा अत्याचार हो रहा था क्योंकि एक भविष्यवाणी अनुसार कंस का वध श्री कृष्ण के हाथों होना था जो कंस के होने वाले भांजे थे और कंस की बहन देवकी के पुत्र थे। कंस को जब अपनी मृत्यु का सच पता चला तब कंस ने अपनी ही बहन और जीजा वासुदेव को बन्दी कारागार में डलवा दिया। यह कहानी हमें यह सीख देती है कि मानव कितना स्वार्थी हो चूका था। द्वापर युग में मानव बहुत से समुदायों का गठन कर रहें थे क्योंकि अब लड़ाई जाति समूह पर आ गयी थी इसलिए लोगों ने अपने व्यक्तिगत समुदाय बनाने और अपना वर्चश्व स्थापित करना शुरू कर दिया था तब भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें समझाया और उन्हें एक किया लेकिन उन लोगों ने कलयुग में अपने समुदायों को धर्म के रूप में स्थापित किया।
कलयुग / Kali Yuga
कलयुग यानि हम आज जिस युग में रहते है जिसकी समय सीमा ४ लाख ३२००० हजार वर्ष है जिसमे मानव की आयु १०० होती है। कलयुग मानव की लम्बाई औसतम ५.५ (३.५ हाथ ) होती है। इस युग में तीर्थ गंगा है। कलयुग में पाप ७५ प्रतिशत और पुण्य २५ प्रतिशत होता है। कलयुग में लोहे की मुद्रा होती है और मिटटी के पात्र होते है। कलयुग में धर्म का एक पैर होने की वजह से हमारा धर्म अपाहिज हो गया है जिस कारण पाप में ७५ प्रतिशत से कहि ज्यादा बढ़ोतरी हो गयी है जिस वजह से आज मानव धर्म की आड़ में सबसे ज्यादा पाप कर रहें है कलयुग में मानव दो चेहरे लगाकर जीने लगा है। कलयुग में जो व्यक्ति झूठ को जितना जोर -जोर से चिल्लाते है लोग उसी को सच मानते है और सच बोलने वाले को कोई नहीं पूछता है क्योंकि कलयुग में मानव अपना अस्तित्व और अपना कर्म भूलता जा रहा है और पुरूस्वार्थ की जगह स्वार्थी हो गया है।
कलयुग को लेकर हर युग में महापुरुषों और ज्ञानी लोगों ने कहा था की कलयुग में स्त्री और पुरुष दोनों अधर्म के रास्ते पर चलेगें। कलयुग में स्त्री और पुरुष धीरे -धीरे अपने सारे संस्कारों को भुला देगें वह लोग बड़े -बुजुर्गो का अपमान करेंगे। कलयुग में जीवों की हत्या करना और पेड़ों को काटना आम बात होगी। कलयुग में माता -पिता का प्यार इतना अधिक हो जायगा की अपने ही बच्चें के विकास में बाधा बन जाएंगे। कलयुग में महिलाओं का वर्चस्व बहुत अधिक होगा वह पुरुषों की तरह अपने बालों को कटवाएगी उनकी तरह के कपड़े पहनेगी। कलयुग में स्त्री और पुरुष दोनों का शराब पीना ,दूसरे व्यक्ति के साथ संबन्ध बनाना ,चोरी करना और अपने से कमजोर लोगों पर अत्याचार करना आम बात हो जाएगी लोग बड़े और पैसे वाले व्यक्ति को अच्छा और सभ्य समझेंगे और गरीब व्यक्ति को हीन भावना से देखा जाएगा।
उपसंहार / Epilogue
हम यह कह सकतें है कि चारों युग अलग -अलग थे और इसलिए मानव भी अलग—अलग रहें जिस युग में धर्म का जैसा प्रभाव रहा उसी प्रकार से मानव का जीवन है। जब धर्म में अधर्म हावी होती है तब लोग हम्रषा भ्रमित होते है उस भ्रम में लोग अधर्म को चुनते है और लालसा को अपना जीवन समझ बैठते है और यही उस मानव के जीवन के पतन का कारण बनता है। हमारे वेदों ,शास्त्रों में कहा गया है कि परिवर्तन ही जीवन का नियम है और इसीलिए युग का परिवर्तन होता है तभी तो एक युग के बाद दूसरा युग आता है और यही समयचक्र चलता रहता है और इस समयचक्र के दौरान जो भी प्राणी जो करता है उसे उसके कर्मो के आधार पर उसे जीवन प्राप्त होता है। धर्म पर अधर्म की विजय प्राप्त कभी नहीं होती है लेकिन अंधकार के कारण कुछ समय के लिए छुप जरूर जाता है लेकिन फिर नया सबेरा होता है हमारे जीवन को सत्य से परिचित करवाने के लिए हमें हमारे अस्तित्व से मिलाने की कोशिश करता है।
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