प्रारंभिक मानव की आजीविका प्राचीन काल में वे अपना जीवन कैसे व्यतीत करते हैं / Livelihoods of Early Humans How They Lived Their Lives in Ancient Times
प्रस्तावना / Preface
मानव का प्रारम्भिक जीवन बहुत ही कठिनाइयों से भर हुआ था। हम जानते है कि जब मानव का जन्म हुआ तब पृथ्वी पर जीवन का आरम्भ हो रहा था इसलिए उस समय के मानव को किसी भी चीज के बारे में पता नहीं था। इसलिए प्रारम्भिक मानव के सामने बहुत बड़ी -बड़ी चुनौतिया थी क्योंकि उन्हें किसी चीज कि समझ नहीं थी एक प्रकार से मस्तिष्क से शून्य थे। उन्हें यह तो पता था कि भूख लगने पर कुछ खाना चाहिए लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि हम क्या खाए और कैसे खाये क्योंकि प्रारम्भिक मानव बन्दर के समान होता था इसलिए उन्हें यह नहीं पता था कि हमें किस प्रकार अपनी रहने कि व्यवस्था करनी चाहिए। आज मानव बहुत विकशित हो चूका है लेकिन हम उन्हें भूल गए जिनकी वजह से हम इतने अत्याधुनिक मानव संरचना बन पाए है लेकिन हमें इतना अत्याधुनिक बनाने के लिए प्राचीनकाल में मानवजाति या हमारे पर्वजों ने बहुत संघर्ष किया है
प्रारम्भिक मानव का जीवन / early human life
प्रारम्भिक मानव जो देखने में बन्दर के समान था फिर धीरे -धीरे उसमे बदलाव हुए और पूर्णरूप से मानव बना जिसके उपरांत वह फल -फूल ,कन्दमूल और मांस खा कर अपने जीवन गुजारते थे। मानव अपने आपको सर्दी -गर्मी और बरसात से बचाने के लिए वह गुफाओं का सहारा लेते थे और घास -फूस का प्रयोग ओढ़ने और बिछाने के लिए करते थे और पहने के लिए पेड़ कि छाल का इस्तमाल करते थे। प्रारम्भिक मानव ने धीरे -धीरे हर चीज के बारे में सोचना और समझना शुरू किया। पेड़ों के आपस में रगड़ खाने और पत्थरों के टकराने से निकलने वाली चिंगारी से उन्हें आग का महत्व समझ में आने लगा था। आग से भुंजे हुए मांस को खाने में उन्हें एक अच्छा अनुभव प्राप्त हुआ। आग अब उनके जिनचर्या में शामिल हो चुकी थी। आग का प्रयोग वह रात में उजाले के रूप में और बड़े जानवरों को भगाने के लिए भी करने लगे थे।
प्रारम्भिक मानव अपने जीवन में लगातार बदलाव कर रहा था वह पत्थरों को नोकीला करके हथियार बनाने लगा था जिसका प्रयोग वह जानवरों का शिकार करने के लिए करता था। उगते हुए पौधों को देख उसके मन में और भी फसलें पैदा करने कि इच्छा जागृत होने लगी इस तरह से वह लोग नए -नए पौधों को देखकर उनका प्रयोग खाने के लिए करने और उनके बीज निकालकर उन्हें दोबारा पैदा करने का प्रयास शुरू किया और उन्होंने ने गेहू और जौ कि दो फसलें उगाई थी। फसलों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए खेतों के पास झोपड़ी बनाकर रहने लगें इससे उन्हें एक सुरक्षित स्थान का एहसास हुआ और छोटी -छोटी बस्तियां बनाकर समूह में रहने लगें और फसलों कि नयी -नयी नस्लों को तैयार करने लगे थे ,पशु पालन शुरू कर दिया और खेती में पशुओं का इस्तमाल करने लगें।
प्रारम्भिक मानव अब आधुनिक मानव बनता जा रहा था। उसे यह समझ में आने लगा था कि हम जितना सोचेंगे हमारे काम उतने ही आसान होते जाएंगे जैसे कुछ लोगों ने गोलाकार आकृतियाँ देखी जिससे उनके मन में विचार आया कि क्यों ना हम पत्थरों को एक गोलाकार आकार देकर पहिये बनाये और उनका प्रयोग हाथगाड़ी बनाने में करें और उसको जानवरों कि मदद से भारी समान लाने और ले जाने के लिए उपयोग किया जाए और उन्होंने पत्थरों को तरासकर पहिये बनाए और हाथगाड़ी का एक ढांचा बनाकर उसमें उन्होंने पहिये लगा दिए इस प्रकार पहिये का आविष्कार हुआ उस समय मानव वह काम कर रहा था जो उनकी बुनियादी जरूरत थी प्रारम्भिक मानव अपने रहन -सहन में परिवर्तन कर रहा था जिससे उसकी बुनियादी जरूरतें पूरी हो सकें।
प्रारम्भिक शहरी सभ्यता / early urban civilization
प्रारम्भिक मानव ने अब अपने जीवन को सुख -सुविधाओं के साथ बहुत अच्छे से जीना सीख लिया था क्योंकि उन्होंने बहुत उन्नति कर ली थी और अब वह बस्तियों कि अपेक्षा शहर बसाना चाहते थे जहा पर हर तरह कि सुख -सुविधाएं हो जहा पर लोग अच्छे से रह सकें और व्यापार कर सकें इसलिए लोग नए शहर बसाने का विचार करने लगें और उन्होंने नदियों के किनारे ऊचें टीलों में शहर बसाने कि योजना बनाई ताकि लोगों को पानी कि समस्या ना हो और बाढ़ के समय नदी का पानी शहरों में ना घुसे। नदी के किनारे शहर होने से व्यापारी नदी से अपने समान का आवा -गमन भी कर सकता था। हम लोग जब भी शहरी सभ्यता कि बात करते है तब सबसे पहले मोहन -जोदड़ों और हड़प्पा कि उन्नत शहरीकरण सभ्यता हमें सबसे पहले याद आती है क्योकि यहां पर चिकित्सा ,शिक्षा ,पेयजल ,मनोरंजन ,धर्मशाला ,सुरक्षा कर्मी और एक बड़ा बाजार आदि हुआ करते थे।
मोहन -जोदड़ों और हड़प्पा एक बहुत उन्नत शहरी सभ्यता है जहा पर रहने के लिए बड़े -बड़े भवनों का निर्माण कराया गया था और एक तरफ बाजार भी बनाई गयी थी जहा पर दूर -दूर से व्यापार करने के लिए लोग आते थे जिससे लोग अच्छा व्यापार कर पाते थे उस समय एक जगह से दूसरी जगह पर जाने के लिए हाथगाड़ी ,घोड़ागाड़ी और हाथगाड़ी में बैलों कि जोड़ी लगाकर समान ढोने के लिए इस्तमाल करते थे। शहर में बड़ी -बड़ी सड़कें होती थी जो लोगों के चलने में सहायक बनती थी। सड़कों के किनारे नालियां होती थी जो भवनों से निकलने वाले गन्दे पानी को शहर से बाहर निकालती थी और नदी से भवनों तक पानी पहुंचाने के लिए मिट्टी कि पाइप जैसी बन्द नालियों का इस्तमाल होता था जिसे हवा के दबाव के जरिये से पानी को मिटटी कि बंद नालियों से भवनों तक पहुंचाया जाता था इसके अलावा लोगों कि सुविधा के लिए कुऐ और तालाब भी बनाये जाते थे
शहरी सभ्यता में उस समय के लोग मिटटी के बर्तनो का इस्तमाल खाना पकाने और खाना खाने के लिए प्रयोग किया करते थे बच्चों के लिए पाठशालाएं बनाई जाती थी जहा पर हर प्रकार कि पढ़ाई -लिखाई बच्चों को कराई जाती थी। शहरीकरण में बाहर से आने वाले लोगों के ठहरने के लिए धर्मशालाएं बनाई जाती थी ताकि लोगों को शहर में रहने के लिए जगह मिल सकें। शहरों में रात के उजालें के लिए सड़क के किनारे में बाम्बू लगाकर मशालें जलाई जाती थी। शहरों में मनोरंजन के लिए मंच बनाये जाते थे जहा पर नृत्य और नाटक हुआ करते थे। शहर कि शान्ति को बनाये रखने के लिए सुरक्षा कर्मी होते थे ताकि किसी भी प्रकार का अपराध ना फ़ैल सकें। शहर कि बस्तियां ज्यादातर दो भागों में बटी होती थी एक बस्ती में शहर के व्यापारी ,नामचीन व्यक्ति और बड़े लोग रहते थे और दूसरी बस्ती में निम्न तपके के लोग रहा करते थे।
उपसंहार / Epilogue
प्रारम्भिक मानव जो मस्तिष्क से बिलकुल शून्य था लेकिन धीरे -धीरे उसने अपने आपको पहचाना और वह जो भी देखता उसको देखकर उसके बारे सोचने के लिए उसके मस्तिष्क में हलचल होने लगती थी और उससे जो समझता उससे वह कुछ करने के लिए सोचता था जिससे उसमें बदलाव आने शुरू हो गए थे और वह नए -नए अविष्कार करने लगा था जिसके कारण प्रारम्भिक मानव का जीवन बदलने लगा था क्योंकि प्रारम्भिक मानव अपने लिए छोटी -छोटी बस्तियां बनाने लगा था रहने के लिए ,पत्थरो के औजारों का इस्तमाल जनवरों के शिकार करने और अन्य कामों के लिए वह करने लगा था अपने उपयोग के लिए वह हर रोज कोई ना कोई अविष्कार करता था।
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